Big Contribution of Youth 2023 || राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान

Contribution of Youth:- वर्ग और उसकी शक्ति–आज का छात्र कल का नागरिक होगा। उसी के सबल कन्धों पर देश के निर्माण और विकास का भार होगा। किसी भी देश के युवक–युवतियाँ उसकी शक्ति का अथाह सागर होते हैं और उनमें उत्साह का अजस्र स्रोत होता है।

आवश्यकता इस बात की है कि उनकी शक्ति का उपयोग सृजनात्मक रूप में किया जाए; अन्यथा वह अपनी शक्ति को तोड़–फोड़ और विध्वंसकारी कार्यों में लगा सकते हैं।

प्रतिदिन समाचार–पत्रों में ऐसी घटनाओं के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। आवश्यक और अनावश्यक माँगों को लेकर उनका आक्रोश बढ़ता ही रहता है। यदि छात्रों की इस शक्ति को सृजनात्मक कार्य में लगा दिया जाए तो देश का कायापलट हो सकता है।

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छात्रों का योगदान (Contribution of students):–

असन्तोष के कारण छात्रों के इस असन्तोष के क्या कारण हैं?

वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग (Contribution of Youth) क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ये कुछ विचारणीय प्रश्न हैं। इसका प्रथम कारण है–आधुनिक शिक्षा प्रणाली का दोषयुक्त होना। इस शिक्षा–प्रणाली से विद्यार्थी का बौद्धिक विकास नहीं होता |

तथा यह विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं कराती; परिणामतः देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जब छात्र को यह पता ही है कि अन्तत: उसे बेरोजगार ही भटकना है तो वह अपने अध्ययन के प्रति लापरवाही प्रदर्शित करने लगता है।

विद्यार्थियों पर राजनैतिक दलों के प्रभाव के कारण भी छात्र–असन्तोष पनपता है। कुछ स्वार्थी तथा अवसरवादी राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों के लिए विद्यार्थियों का प्रयोग करते हैं। आज का विद्यार्थी निरुद्यमी तथा आलसी भी हो गया है।

वह परिश्रम से कतराता है और येन–केन–प्रकारेण डिग्री प्राप्त करने को उसने अपना लक्ष्य बना लिया है। इसके अतिरिक्त समाज के प्रत्येक वर्ग में फैला हुआ असन्तोष भी विद्यार्थियों के असन्तोष को उभारने का मुख्य कारण है।

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राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान ( Contribution of Youth ):-

राष्ट्र निर्माण में छात्रों का योगदान आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होगा और पूरे देश का भार उसके कन्धों पर ही होगा। इसलिए आज का विद्यार्थी जितना प्रबुद्ध, कुशल, सक्षम और प्रतिभासम्पन्न होगा ; देश का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा।

इस दृष्टि से विद्यार्थी के कन्धों पर अनेक दायित्व आ जाते हैं, जिनका निर्वाह करते हुए वह राष्ट्र–निर्माण की दिशा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है।

राष्ट्र निर्माण (Contribution of Youth) में विद्यार्थियों के योगदान की चर्चा इन मुख्य बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है-

(क) अनुसन्धान के क्षेत्र में:– आधुनिक युग विज्ञान का युग है। जिस देश का विकास जितनी शीघ्रता से होगा, वह राष्ट्र उतना ही महान् होगा; अत: विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वे नवीनतम अनुसन्धानों के द्वार खोलें। चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययनरत विद्यार्थी औषध और सर्जरी के क्षेत्र में नवीन अनुसन्धान कर सकते हैं।

वे मानवजीवन को अधिक सुरक्षित और स्वस्थ बनाने का प्रयास कर सकते हैं। इसी प्रकार इंजीनियरिंग में अध्ययनरत विद्यार्थी विविध प्रकार के कल–कारखानों आदि के विकास की दिशा में भी अपना योगदान दे सकते हैं।

(ख) परिपक्व ज्ञान की प्राप्ति एवं विकासोन्मुख कार्यों में उसका प्रयोग:– जीवन के लिए परिपक्व ज्ञान परम आवश्यक है। अधकचरे ज्ञान से गम्भीरता नहीं आ सकती, उससे भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है।

इसीलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने ज्ञान को परिपक्व बनाएँ तथा अपने परिवार के सदस्यों को ज्ञान–सम्पन्न करने, देश की सांस्कृतिक सम्पदा का विकास करने आदि विभिन्न दृष्टियों से अपने इस परिपक्व ज्ञान का सदुपयोग करें।

(ग) स्वयं सचेत रहते हुए सजगता का वातावरण उत्पन्न करना:– विद्यार्थी अपने सम–सामयिक परिवेश के प्रति सजग और सचेत रहकर ही राष्ट्र–निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं। विश्व तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। इसलिए अब प्रगति के प्रत्येक क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धाओं का सामना करना पड़ता है।

इन प्रतिस्पर्धाओं में सम्मिलित होने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी सामाजिक गतिविधियों के प्रति सचेत रहें और दूसरों को भी इसके लिए (Contribution of Youth) प्रेरित करें।

(घ) नैतिकता पर आधारित गुणों का विकास:– मनुष्य का विकास स्वस्थ बुद्धि और चिन्तन के द्वारा ही होता है। इन गुणों का विकास उसके नैतिक विकास पर निर्भर है। इसलिए अपने और राष्ट्र–जीवन को समृद्ध बनाने के लिए विद्यार्थियों को अपना नैतिक बल बढ़ाना चाहिए तथा समाज में नैतिक–जीवन के आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए।

(ङ) कर्तव्यों का निर्वाह:– आज का विद्यार्थी समाज में रहकर ही अपनी शिक्षा प्राप्त करता है। पहले की तरह वह गुरुकुल में जाकर नहीं रहता। इसलिए उस पर अपने राष्ट्र, परिवार और समाज आदि के अनेक उत्तरदायित्व आ गए हैं।

जो विद्यार्थी अपने इन उत्तरदायित्वों अथवा कर्त्तव्यों का निर्वाह करता है, उसे ही हम सच्चा विद्यार्थी कह सकते हैं। इस प्रकार राष्ट्र–निर्माण के लिए विद्यार्थियों में कर्त्तव्य–परायणता की भावना का विकास होना परम आवश्यक है।

(च) अनुशासन की भावना को महत्त्व प्रदान करना:– अनुशासन के बिना कोई भी कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न नहीं हो सकता। राष्ट्र–निर्माण का तो मुख्य आधार ही अनुशासन है। इसलिए विद्यार्थियों का दायित्व है कि वे अनुशासन में रहकर देश के विकास का चिन्तन करें।

जिस प्रकार कमजोर नींववाला मकान अधिक दिनों तक स्थायी नहीं रह सकता, उसी प्रकार अनुशासनहीन राष्ट्र अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। विद्यार्थियों को अनुशासित सैनिकों के समान अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, तभी वे राष्ट्र–निर्माण में योग दे सकते हैं।

(छ) समाज–सेवा:– हमारा पालन–पोषण, विकास, ज्ञानार्जन आदि समाज में रहकर ही सम्भव होता है; अतः हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि हम अपने समाज के उत्थान की दिशा में चिन्तन और मनन करें।

विद्यार्थी समाज–सेवा द्वारा अपने देश के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, वे शिक्षा का प्रचार कर सकते हैं और अशिक्षितों को शिक्षित बना सकते हैं। इसी प्रकार (Contribution of Youth) छुआछूत की कुरीति को समाप्त करके भी विद्यार्थी समाज के उस पिछड़े वर्ग को देश की मुख्यधारा से जोड़कर अपने कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा दे सकते हैं।

उपसंहार:–

विद्याध्ययन से विद्यार्थियों में चिन्तन और मनन की शक्ति का विकास होना स्वाभाविक है, किन्तु कुछ विपरीत परिस्थितियों के फलस्वरूप अनेक छात्र समाज–विरोधी कार्यों में लग जाते हैं।

इससे देश और समाज की हानि होती है। भविष्य में देश का उत्तरदायित्व विद्यार्थियों को ही सँभालना है, इसलिए यह आवश्यक है कि वे राष्ट्रहित के विषय में विचार करें और ऐसे कार्य करें, जिनसे हमारा राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ता रहे।

सेवा का लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ेंगे, तभी वे सच्चे राष्ट्र–निर्माता हो सकेंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपनी शक्ति का सही मूल्यांकन करते हुए उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाएँ। दोस्तों यदि यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो comment करके अवश्य बताएं ऐसी और भी जानकारी के लिए visit करें www.hindwatch.in पर धन्यवाद।

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